रामधारी सिंह दिनकर
साधारणो यमुभयोः प्रणयः स्मरस्य,
तप्तेन तप्तमयसा घटनाय योग्यम् |
~ विक्रमोर्वशीयं
प्रथम अंक
सूत्रधार
नीचे पृथ्वी पर वसन्त की कुसुम-विभा छाई है,
ऊपर है चन्द्रमा द्वादशी का, निर्मेघ गगन में |
खुली नीलिमा पर विकीर्ण तारे यों डीप रहे हैं,
चमक रहे ही नील चीयर पर बूटे ज्यों चाँदी के;
या प्रशान्त, निस्सीम जलधि में जैसे चरण-चरण पर
नील वारि को फोड़ ज्योति के द्वीप निकल आए हों |